Wednesday, 17 December 2014

saraansh

सारांश 

बचपन से माँ बाप हमें पढ़ने को कहते रहे,
पर आगे जाकर खुद हमसे दूर होने के डर को सहते रहे। 
दिन रात हमारी कामयाबी के सपने बुनते रहे,
तकलीफें सारी खुद सहकर हमारे लिए बस खुशियाँ चुनते रहे। 
दुआ देते रहे कि बड़े होकर बच्चे बड़े इंसान बन जाए,
पर डरते रहे कि दूर जाकर कहीं हमसे ही ना अनजान बन जाए। 
आज देखो उनका बच्चा पढ़ने दूर जा रहा, 
लगता है जैसे अकेले माँ बाप की आँखों का नूर जा रहा । 
माँ बाप के नि:स्वार्थ प्यार का बच्चे ने भी क्या मूल दिया,
नई जगह जाकर बच्चा पुराने माँ बाप को भूल गया। 
नये दोस्तों के साथ वो हँस - खेलकर रहने लगा,
फ़ोन करने की फुरसत नहीं माँ बाप से कहने लगा । 
वहाँ माँ बाप अकेले रहकर मुरझाते रहे,
इस बार दिवाली पर ज़रूर आएगा यही बात दोहराते रहे । 
हम शायद बूढ़े हो रहे है ऐसा सोचने लगे,
अकेले ही अब अपनी बीमारियों से जूझने लगे । 
बच्चे की शादी की चिंता भी अब माँ बाप को सताने लगी,
पर जीवनसाथी चुनते समय बच्चे को कहाँ  माँ बाप की याद आने लगी । 
शादी करके बच्चा और भी बड़ा हो गया ,
अपनी ज़िम्मेदारियों में वो थोड़ा और खो गया । 
इंतज़ार में कटती माँ बाप की ज़िंदगी का अब एक ही मकसद रहा था,
बस एक बार मिलने आ जाओ कुछ हिम्मत जुटाकर ही ये कहा थ।  
उस बच्चे की ज़िंदगी तो अब अपने बच्चो तक ही सीमित है,
उसे भी कहाँ पता था उसके माँ बाप तो बस  उसे देखने को ही जीवित है । 
बस इन्हीं पंक्तियों में माँ बाप के जीवन का सारांश समाया है ,
बच्चो के प्यार को तरसते हैं  वो पैसा तो उन्होंने भी खूब कमाया है । 
इस गाथा से सीख लेकर अपने माँ बाप का जीवन खुशियों से भर दो ,
जिनसे मिला है ये जीवन का दान उन्ही के नाम ये जीवन कर दो । 


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