Tuesday, 25 July 2017

kashmakash


Kashmakash 

Katgarhe me fir se aaj ek maa h
Beti h pet me ye uska gunah h
Bête ki laalsa nai beti k lie khauff h dil me 
Tbi kashmakash me fir se aaj ek maa h

Janam de skti h, pr kismat likh pati to baat hoti
Kya kya beeti h khud pe bta pati to baat hoti 
Beti ki aane wali zindgi sochke hi uska dil dara h
Tbi kashmakash me fir se aaj ek maa h

Sbka pet bharegi pr us pe Dhyan na koi dega
Achhai sunne ko tarsegi vo kami to har koi Gina hi dega
Tareef sun kr b konsa uski kismat ko badalna h
Sbki khushiyo me hi to akhir usko dhalna h

Is baat ka to pehle se hi uski maa ko pta h 
Tbi to dukh me fir se aaj ek maa h

Khrab nazar khrab log ye sb se khud hi use bachna hoga
Akhir me ldko se kahi kam nai is baat ka b khyal use rakhna hoga
Dusro k dukh door krne me apni takleef ko use zarur dhakna hoga
Rambha daasi Mantri mata sb kuch use hi to banna hoga
Fir b na us ghar me koi khas uski jagah h
Yhi sochke to fir se aaj ek maa khafa h


Na to aurat ka dil badlega na hi ye samaj
Bhagwan b virudhh uske, virudhh ye riti riwaj 
Zindgi de rhi h beti ko ya de rhi h jahanum, is baat ka na usko kuch pta h
Tbi kashmakash me fir se aaj ek maa h
Tbi duvidha me fir se aaj ek maa h


Monday, 11 April 2016

बेटी है बेटी अभिशाप नही

बेटी है बेटी अभीशाप नहीं


पैदा होते ही चुभने लगती है सबकी आँख में 
कोशिश करता ह समाज मिलादे हर बेटी को रख में 
क्यों गुस्सा रहता है उसे देखकर सबकी नाक पे
क्यों गलती निकली जाती है उसी की हर बात पे
पैदा होकर लड़की ने किया कोई पाप नहीं 
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नहीं


ना उसके पैदा होने की ख़ुशी थी, ना उसके बड़े होने का चाव था,
उस नन्ही सी जान का होना ही सबकी खुशियों पर घाव था,
क्यों लड़की को मिलता उसके हिस्से का प्यार नहीं
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नहीं


बचपन से ही जिसे चूल्हे की रख में धकेल दिया 
घर के झूठे बर्तनों का बोझ भी उस पर उधेल दिया
लडकी को मिलता क्यों पढाई का अधिकार नही
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नही


एक दिन वो अपना घर छोड़ दुसरे के घर की इज्ज़त बन जाती है
अपने सभी अपनों को छोड़ किसी और के अपनों को अपनाती है
फिर भी दोनों घरों में देता कोई उसे अपने का स्थान नही 
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नही


बच्चे को जिंदगी देने के साथ जीवन जीने का ज्ञान भी देती है
उस बच्चे को काबिल बनाने में वो सारी जिंदगी गुज़ार सी देती है
फिर भी मिलता उस बच्चे को कभी माँ का नाम नही
नारी को दो उसका अधिकार  अपमान नही

चलो मिलकर औरत को समाज में शिक्षा व सम्मान दे
बेटे के समान फ़र्ज़ निभाने का उसे भी अधिकार दे
वृधाश्रम में सोएंगे फिर कभी किसी के माँ बाप नही
बेटी है वरदान अभिशाप नही



Wednesday, 17 December 2014

saraansh

सारांश 

बचपन से माँ बाप हमें पढ़ने को कहते रहे,
पर आगे जाकर खुद हमसे दूर होने के डर को सहते रहे। 
दिन रात हमारी कामयाबी के सपने बुनते रहे,
तकलीफें सारी खुद सहकर हमारे लिए बस खुशियाँ चुनते रहे। 
दुआ देते रहे कि बड़े होकर बच्चे बड़े इंसान बन जाए,
पर डरते रहे कि दूर जाकर कहीं हमसे ही ना अनजान बन जाए। 
आज देखो उनका बच्चा पढ़ने दूर जा रहा, 
लगता है जैसे अकेले माँ बाप की आँखों का नूर जा रहा । 
माँ बाप के नि:स्वार्थ प्यार का बच्चे ने भी क्या मूल दिया,
नई जगह जाकर बच्चा पुराने माँ बाप को भूल गया। 
नये दोस्तों के साथ वो हँस - खेलकर रहने लगा,
फ़ोन करने की फुरसत नहीं माँ बाप से कहने लगा । 
वहाँ माँ बाप अकेले रहकर मुरझाते रहे,
इस बार दिवाली पर ज़रूर आएगा यही बात दोहराते रहे । 
हम शायद बूढ़े हो रहे है ऐसा सोचने लगे,
अकेले ही अब अपनी बीमारियों से जूझने लगे । 
बच्चे की शादी की चिंता भी अब माँ बाप को सताने लगी,
पर जीवनसाथी चुनते समय बच्चे को कहाँ  माँ बाप की याद आने लगी । 
शादी करके बच्चा और भी बड़ा हो गया ,
अपनी ज़िम्मेदारियों में वो थोड़ा और खो गया । 
इंतज़ार में कटती माँ बाप की ज़िंदगी का अब एक ही मकसद रहा था,
बस एक बार मिलने आ जाओ कुछ हिम्मत जुटाकर ही ये कहा थ।  
उस बच्चे की ज़िंदगी तो अब अपने बच्चो तक ही सीमित है,
उसे भी कहाँ पता था उसके माँ बाप तो बस  उसे देखने को ही जीवित है । 
बस इन्हीं पंक्तियों में माँ बाप के जीवन का सारांश समाया है ,
बच्चो के प्यार को तरसते हैं  वो पैसा तो उन्होंने भी खूब कमाया है । 
इस गाथा से सीख लेकर अपने माँ बाप का जीवन खुशियों से भर दो ,
जिनसे मिला है ये जीवन का दान उन्ही के नाम ये जीवन कर दो । 


Thursday, 27 November 2014

INTERVIEW


I wrote this to kill time and stress while waiting for my turn to be interviewed.



Interview देने आए लोगों के गज़ब नज़ारे है ,
रंग बिरंगी इस दुनिया में तरह तरह के मित्र हमारे है । 
किसी के माथे पर है पसीने की धार और होंठों पर है राम का नाम,
चेहरे का रंग उतरा है यूँ जैसे हो 104 degree बुखार। 
अंदर गए जनाब तो जाने क्या क्या जवाब दिया ,
बहार निकालकर आए तो लगा जैसे पहली बार हो साँस लिया । 
एक ये भी साहब थे जो दूर से हँसते कमाल दिखे ,
tension के इस माहौल में वो बेफिक्री की मिसाल दिखे । 
अंदर जाकर इन्होने खूब ठहाके लगाए होंगे ,
बहार निकले तो लगा अंदर किस्से तो सुनाएं होंगे । 
इनकी भी क्या चर्चा करें जो किताबों में ही खोए रहे  ,
सारा ज्ञान ये दिमाग की जगह बैग में ही ढोए रहे । 
अंदर जाकर इन्होने शायद open book हो test दिया ,
बहार आकर बिफरे यूँ जैसे अंदर इन्होने baddest दिया । 
बहार निकलते लोगों के चेहरों पर अलग अलग जो कहानियाँ है ,
रब जाने इन्ही की अमानत है या interviewer की मेहरबानियाँ है ।