बेटी है बेटी अभीशाप नहीं
पैदा होते ही चुभने लगती है सबकी आँख में
कोशिश करता ह समाज मिलादे हर बेटी को रख में
क्यों गुस्सा रहता है उसे देखकर सबकी नाक पे
क्यों गलती निकली जाती है उसी की हर बात पे
पैदा होकर लड़की ने किया कोई पाप नहीं
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नहीं
ना उसके पैदा होने की ख़ुशी थी, ना उसके बड़े होने का चाव था,
उस नन्ही सी जान का होना ही सबकी खुशियों पर घाव था,
क्यों लड़की को मिलता उसके हिस्से का प्यार नहीं
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नहीं
बचपन से ही जिसे चूल्हे की रख में धकेल दिया
घर के झूठे बर्तनों का बोझ भी उस पर उधेल दिया
लडकी को मिलता क्यों पढाई का अधिकार नही
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नही
एक दिन वो अपना घर छोड़ दुसरे के घर की इज्ज़त बन जाती है
अपने सभी अपनों को छोड़ किसी और के अपनों को अपनाती है
फिर भी दोनों घरों में देता कोई उसे अपने का स्थान नही
बेटी है बेटी कोई अभिशाप नही
बच्चे को जिंदगी देने के साथ जीवन जीने का ज्ञान भी देती है
उस बच्चे को काबिल बनाने में वो सारी जिंदगी गुज़ार सी देती है
फिर भी मिलता उस बच्चे को कभी माँ का नाम नही
नारी को दो उसका अधिकार अपमान नही
चलो मिलकर औरत को समाज में शिक्षा व सम्मान दे
बेटे के समान फ़र्ज़ निभाने का उसे भी अधिकार दे
वृधाश्रम में सोएंगे फिर कभी किसी के माँ बाप नही
बेटी है वरदान अभिशाप नही